हिंदुओं की पाँच माँओं में से एक हैं गंगा मैया
सभी पुराणों के अनुसार गंगा जी का महत्व
●गङ्गा को परम पवित्र नदी इसलिए भी कहते है क्योंकि वह भगवान् विष्णुके चरणों से प्रकट हुई है ।
●नदियों में श्रेष्ठ गङ्गा स्मरणमात्र से समस्त क्लेशों का नाश करने वाली , सम्पूर्ण पापों को दूर करने वाली तथा सारे उपद्रवों को मिटा देनेवाली हैं ।
●समुद्रपर्यन्त पृथ्वीपर जो – जो पुण्यक्षेत्र हैं , सब तीर्थो में स्नान करनेसे जो पुण्य प्राप्त होते हैं , वे सब मिलकर गङ्गाजी के एक बूँद जल से किये हुए अभिषेक की सोलहवीं कला की भी समता नहीं कर सकते ।
●जो गङ्गा से सौ योजन दूर खड़ा होकर भी ‘ गङ्गा – गङ्गा ‘ का उच्चारण करता है , वह भी सब पापोंसे मुक्त हो जाता है ; फिर जो गङ्गामें स्नान करता है , उसके लिये तो कहना ही क्या है ?
●भगवान् विष्णुके चरणकमलों से प्रकट होकर भगवान् शिव के मस्तकपर विराजमान होनेवाली भगवती गङ्गा मुनियों और देवताओंके द्वारा भी भलीभाँति सेवन करनेयोग्य हैं , फिर साधारण मनुष्योंके लिये तो बात ही क्या है ?
●श्रेष्ठ मनुष्य अपने ललाट में जहाँ गङ्गाजी की बालूका तिलक लगाते हैं , वहीं अर्धचन्द्रके नीचे प्रकाशित होनेवाला तृतीय नेत्र समझना चाहिये ।
●गङ्गा में किया हुआ स्नान महान् पुण्यदायक तथा देवताओं के लिये भी दुर्लभ है ; वह भगवान् विष्णु का सारूप्य देने वाला होता है इससे बढ़कर उसकी महिमा के विषयमें और क्या कहा जा सकता है ?
●गङ्गामें स्नान करनेवाले पापी भी सब पापों से मुक्त हो श्रेष्ठ विमानपर बैठकर परम धाम वैकुण्ठको चले जाते हैं । जिन्होंने गङ्गामें स्नान किया है , वे महात्मा पुरुष पिता और माताके कुल की बहुत सी पीढ़ियों को उद्धार करके भगवान् विष्णु के धाममें चले जाते हैं ।
●जो गङ्गाजीका स्मरण करता है , उसने सब तीर्थों में स्नान और सभी पुण्य – क्षेत्रों में निवास कर लिया- इसमें संशय नहीं है ।
●गङ्गा स्नान किये हुए मनुष्य को देखकर पापी भी स्वर्गलोकका अधिकारी हो जाता है । उसके अङ्गों का स्पर्श करनेमात्र से वह देवताओं का अधिपति हो जाता है ।
●गङ्गा , तुलसी , भगवान के चरणोंमें अविचल भक्ति तथा धर्मोपदेशक – २ सद्गुरु में श्रद्धा – ये सब मनुष्योंके लिये अत्यन्त दुर्लभ हैं |
● उत्तम धर्मका उपदेश देनेवाले गुरु के चरणों की धूल , गङ्गाजी को मृत्तिका तथा तुलसीवृक्ष के मूलभाग की मिट्टी को जो मनुष्य भक्तिपूर्वक अपने मस्तकपर धारण करता है , वह वैकुण्ठ धामको जाता है ।
●जो मनुष्य मन – ही – मन यह अभिलाषा करता है कि मैं कब गङ्गाजीके समीप जाऊँगा और कब उनका दर्शन करूंगा , वह भी वैकुण्ठ धामको जाता है ।
●दूसरी बातें बहुत कहनेसे क्या लाभ , साक्षात् भगवान् विष्णु भी सैकड़ों वर्षोंमें गङ्गाजीकी महिमाका वर्णन नहीं कर सकते ।
●माया सारे जगत को मोहमें डाले हुए है , यह कितनी अद्भुत बात है ? क्योंकि गङ्गा और उसके नाम के रहते हुए भी लोग नरकमें जाते हैं ।
●गङ्गाजीका नाम संसार – दुःख का नाश करने वाला बताया गया है । तुलसी के नाम तथा भगवान् की कथा कहने वाले साधु पुरुष के प्रति की हुई भक्तिका भी यही फल है ।
●जो एक बार भी ‘ गङ्गा ‘ इस दो अक्षरका उच्चारण कर लेता है , वह सब पापोंसे मुक्त हो भगवान् विष्णुके लोकमें जाता है ।
●परम पुण्यमयी इस गङ्गा नदी का यदि मेष , तुला और मकरकी संक्रान्तियों में ( अर्थात् वैशाख , कार्तिक और माघके महीनोंमें ) भक्तिपूर्वक सेवन किया जाय तो सेवन करनेवाले सम्पूर्ण जगत्को यह पवित्र कर देती है ।
●गोदावरी , भीमरथी , कृष्णा , नर्मदा , सरस्वती , तुङ्गभद्रा , कावेरी , यमुना , बाहुदा , वेत्रवती , ताम्रपर्णी तथा सरयू आदि सब तीर्थो में गङ्गाजी ही सबसे प्रधान मानी गयी हैं ।
●जैसे सर्वव्यापी भगवान् विष्णु सम्पूर्ण जगत्को व्याप्त करके स्थित हैं , उसी प्रकार सब पापोंका नाश करनेवाली गङ्गादेवी सब तीथों में व्यास हैं ।
●परम पावनी जगदम्बा गङ्गा स्नान – पान आदि के द्वारा सम्पूर्ण संसारको पवित्र कर रही हैं , फिर सभी मनुष्य इनका सेवन क्यों नहीं करते ?
●सूर्य के मकर राशिपर रहते समय जहाँ कहीं भी गङ्गामें स्नान किया जाय , वह स्नान – पान आदिके द्वारा सम्पूर्ण जगत्को पवित्र करती और अन्तमें इन्द्रलोक पहुँचाती है ।
●लोकका कल्याण करनेवाले लिङ्गस्वरूप भगवान् शङ्कर भी जिस गङ्गाका सदा सेवन करते हैं , उसकी महिमाका पूरा – पूरा वर्णन कैसे किया जा सकता है ?
●शिवलिङ्ग साक्षात् श्रीहरिरूप है और श्रीहरि साक्षात् शिव लिङ्गरूप हैं । इन दोनों में थोड़ा भी अन्तर नहीं है । जो इनमें भेद करता है , उसकी बुद्धि खोटी है । अज्ञानके समुद्रमें डूबे हुए पापी मनुष्य ही आदि – अन्तरहित भगवान् विष्णु और शिवमें भेदभाव करते हैं ।
●जो विष्णु , शिव तथा ब्रह्माजी में भेदबुद्धि करता है , वह अत्यन्त भयंकर नरक में जाता है । जो भगवान् शिव , विष्णु और ब्रह्माजी को एक रूपसे देखता है , वह परमानन्दको प्राप्त होता है । यह शास्त्रोंका सिद्धान्त है ।
●गङ्गाके समान कोई तीर्थ नहीं है , माता के समान कोई गुरु नहीं है , भगवान् विष्णु के समान कोई देवता नहीं है तथा गुरुसे बढ़कर कोई तत्त्व नहीं है ।
●सत्य से बढ़कर कोई तप नहीं है , मोक्ष से बड़ा कोई लाभ नहीं है और गङ्गा के समान कोई नदी नहीं है ।
●गङ्गाजी का उत्तम नाम पापरूपी वनको भस्म करनेके लिये दावानल के समान है । गङ्गा संसार रूपी रोग को दूर करनेवाली हैं , इसलिये यत्नपूर्वक उनका सेवन करना चाहिये ।
●गायत्री और गङ्गा दोनों समस्त पापों को हर लेने वाली मानी गयी हैं । जो इन दोनोंके प्रति भक्तिभावसे रहित है , उसे पतित समझना चाहिये ।
●गायत्री वेदों की माता हैं और जाह्नवी ( गङ्गा ) सम्पूर्ण जगत् की जननी हैं । वे दोनों समस्त पापोंके नाशका कारण हैं । जिसपर गायत्री प्रसन्न होती हैं , उसपर गङ्गा भी प्रसन्न होती हैं । वे दोनों भगवान् विष्णुकी शक्तिसे सम्पन्न हैं , अतः सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि देनेवाली हैं । गङ्गा और गायत्री धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष – इन चारों पुरुषार्थो के फलरूपमें प्रकट हुई हैं ।
●ये दोनों निर्मल तथा परम उत्तम हैं और
सम्पूर्ण लोकोंपर अनुग्रह करनेके लिये प्रवृत्त हुई हैं । मनुष्योंके लिये गायत्री और गङ्गा दोनों अत्यन्त दुर्लभ हैं ।
●इसी प्रकार तुलसीके प्रति भक्ति और भगवान् विष्णुके प्रति सात्त्विक भक्ति भी दुर्लभ है । महाभागा गङ्गा स्मरण करनेपर समस्त पापोंका नाश करनेवाली , दर्शन करनेपर भगवान् विष्णुका लोक देनेवाली तथा जल पीनेपर भगवान्का सारूप्य प्रदान करनेवाली हैं । उनमें स्नान कर
लेने पर मनुष्य भगवान् विष्णुके उत्तम धामको जाते हैं ।
●जगत का धारण – पोषण करनेवाले सर्वव्यापी सनातन भगवान् नारायण गङ्गा – स्नान करनेवाले मनुष्यों को मनोवाञ्छित फल देते हैं । जो श्रेष्ठ मानव गङ्गाजल के एक कण से भी अभिषिक्त होता है , वह सब पापों से मुक्त हो परम धामको प्राप्त कर लेता है । गङ्गाके जलविन्दुका सेवन करनेमात्रसे राजा सगर की संतति परम पदको प्राप्त हुई ।
सही बात तो यह है, की गंगाजी माता शक्ति की बहन है, विष्णुजी के चरणकमलों से यह प्रगट हुई है, शिव की जटा ने इन्हें धारण किया है । अब जब कोई इतने पवित्र स्थान पर पुण्य करेगा, गंगा का सेवन करेगा, तो उसका तो बेड़ा पार ही है ।
साभार – शोभना जी